1/5 Nirmala (निर्मला)
गोदान, प्रेमचन्द का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है। कुछ लोग इसे उनकी सर्वोत्तम कृति भी मानते हैं। इसका प्रकाशन 1936 ई० में हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई द्वारा किया गया था। इसमें भारतीय ग्राम समाज एवं परिवेश का सजीव चित्रण है। गोदान ग्राम्य जीवन और कृषि संस्कृति का महाकाव्य है। इसमें प्रगतिवाद, गांधीवाद और मार्क्सवाद (साम्यवाद) का पूर्ण परिप्रेक्ष्य में चित्रण हुआ है।
निर्मला, मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित
प्रसिद्ध हिन्दी उपन्यास है। इसका प्रकाशन सन
१९२७ में हुआ था। सन १९२६ में दहेजप्रथा और
अनमेल विवाह को आधार बना कर इस उपन्यास
का लेखन प्रारम्भ हुआ। इलाहाबाद से प्रकाशित होने
वाली महिलाओं की पत्रिका चाँद में नवम्बर १९२५ से
दिसम्बर १९२६ तक यह उपन्यास विभिन्न किस्तों में
प्रकाशित हुआ महिला-केन्द्रित साहित्य के इतिहास में इस उपन्यास
का विशेष स्थान है। इस उपन्यास की कथा का केन्द्र
और मुख्य पात्र निर्मला नाम की १५ वर्षीय सुन्दर
और सुशील लड़की है। निर्मला का विवाह एक अधेड़
उम्र के व्यक्ति से कर दिया जाता है। जिसके पूर्व
पत्नी से तीन बेटे हैं। निर्मला का चरित्र निर्मल है,
परन्तु फिर भी समाज में उसे अनादर एवं अवहेलना
का शिकार होना पड़ता है। उसकी पति परायणता
काम नहीं आती। उस पर सन्देह किया जाता है, उसे
परिस्थितियाँ उसे दोषी बना देती है। इस प्रकार निर्मला
विपरीत परिस्थितियों से जूझती हुई मृत्यु को प्राप्त
करती है।
निर्मला प्रेमचन्द की दो सामाजिक बुराइयों पर कड़ी टीका है-दहेज, और युवा लड़कियों से बड़े पुरूषों से विवाह करने की प्रथा।निर्मला और उसके परिवार पर पल रहे सभी बातों पर, जिसमें उसके पति, उसके पुत्र और उसकी पुत्री भी है, निर्मला और तोताराम के साथ ऐसा होता है कि उनकी ऐसी हालत खराब हो गई है कि निर्मला और तोताराम का विवाह हो गया है।इस कहानी से आपको इस बात का मूल्यांकन करने में मदद मिलेगी कि उन महिलाओं के साथ किस तरह का व्यवहार किया गया।और आप निश्चित रूप से अपने आशीर्वाद गिनेंगे और परिवर्तन के लिए भगवान का शुक्र है.
2/5 Godaan(गोदान)
गोदान हिंदी के उपन्यास-साहित्य के विकास का उज्वलतम प्रकाशस्तंभ है। गोदान के नायक और नायिका होरी और धनिया के परिवार के रूप में हम भारत की एक विशेष संस्कृति को सजीव और साकार पाते हैं, ऐसी संस्कृति जो अब समाप्त हो रही है या हो जाने को है, फिर भी जिसमें भारत की मिट्टी की सोंधी सुबास भरी है।
प्रेमचंद ने इसे अमर बना दिया है।
उपन्यास का सारांश
गोदान प्रेमचंद का हिंदी उपन्यास है जिसमें उनकी कला अपने चरम उत्कर्ष पर पहुँची है। गोदान में भारतीय किसान का संपूर्ण जीवन - उसकी आकांक्षा और निराशा, उसकी धर्मभीरुता और भारतपरायणता के साथ स्वार्थपरता ओर बैठकबाजी, उसकी बेबसी और निरीहता- का जीता जागता चित्र उपस्थित किया गया है। उसकी गर्दन जिस पैर के नीचे दबी है उसे सहलाता, क्लेश और वेदना को झुठलाता, 'मरजाद' की झूठी भावना पर गर्व करता, ऋणग्रस्तता के अभिशाप में पिसता, तिल तिल शूलों भरे पथ पर आगे बढ़ता, भारतीय समाज का मेरुदंड यह किसान कितना शिथिल और जर्जर हो चुका है, यह गोदान में प्रत्यक्ष देखने को मिलता है। नगरों के कोलाहलमय चकाचौंध ने गाँवों की विभूति को कैसे ढँक लिया है, जमींदार, मिल मालिक, पत्रसंपादक, अध्यापक, पेशेवर वकील और डाक्टर, राजनीतिक नेता और राजकर्मचारी जोंक बने कैसे गाँव के इस निरीह किसान का शोषण कर रहे हैं और कैसे गाँव के ही महाजन और पुरोहित उनकी सहायता कर रहे हैं, गोदान में ये सभी तत्व नखदर्पण के समान प्रत्यक्ष हो गए हैं। गोदान, वास्तव में, 20वीं शताब्दी की तीसरी और चौथी दशाब्दियों के भारत का ऐसा सजीव चित्र है, जैसा हमें अन्यत्र मिलना दुर्लभ है।
गोदान में बहुत सी बातें कही गई हैं। जान पड़ता है प्रेमचंद ने अपने संपूर्ण जीवन के व्यंग और विनोद, कसक और वेदना, विद्रोह और वैराग्य, अनुभव और आदर्श् सभी को इसी एक उपन्यास में भर देना चाहा है। कुछ आलाचकों को इसी कारण उसमें अस्तव्यस्तता मिलती है। उसका कथानक शिथिल, अनियंत्रित और स्थान-स्थान पर अति नाटकीय जान पड़ता है। ऊपर से देखने पर है भी ऐसा ही, परंतु सूक्ष्म रूप से देखने पर गोदान में लेखक का अद्भुत उपन्यास-कौशल दिखाई पड़ेगा क्योंकि उन्होंने जितनी बातें कहीं हैं वे सभी समुचित उठान में कहीं गई हैं। प्रेमचंद ने एक स्थान पर लिखा है - 'उपन्यास में आपकी कलम में जितनी शक्ति हो अपना जोर दिखाइए, राजनीति पर तर्क कीजिए, किसी महफिल के वर्णन में 10-20 पृष्ठ लिख डालिए (भाषा सरस होनी चाहिए), कोई दूषण नहीं।' प्रेमचंद ने गोदान में अपनी कलम का पूरा जोर दिखाया है। सभी बातें कहने के लिये उपयुक्त प्रसंगकल्पना, समुचित तर्कजाल और सही मनोवैज्ञानिक विश्लेषण प्रवाहशील, चुस्त और दुरुस्त भाषा और वणर्नशैली में उपस्थित कर देना प्रेमचंद का अपना विशेष कौशल है और इस दृष्टि से उनकी तुलना में शायद ही किसी उपन्यास लेखक को रखा जा सकता है।
जिस समय प्रेमचन्द का जन्म हुआ वह युग सामाजिक-धार्मिक रुढ़िवाद से भरा हुआ था। इस रुढ़िवाद से स्वयं प्रेमचन्द भी प्रभावित हुए। जब अपने कथा-साहित्य का सफर शुरु किया अनेकों प्रकार के रुढ़िवाद से ग्रस्त समाज को यथाशक्ति कला के शस्त्र द्वारा मुक्त कराने का संकल्प लिया। अपनी कहानी के बालक के माध्यम से यह घोषणा करते हुए कहा कि "मैं निरर्थक रूढ़ियों और व्यर्थ के बन्धनों का दास नहीं हूँ।"
प्रेमचन्द और शोषण का बहुत पुराना रिश्ता माना जा सकता है। क्योंकि बचपन से ही शोषण के शिकार रहे प्रेमचन्द इससे अच्छी तरह वाकिफ हो गए थे। समाज में सदा वर्गवाद व्याप्त रहा है। समाज में रहने वाले हर व्यक्ति को किसी न किसी वर्ग से जुड़ना ही होगा।
प्रेमचन्द ने वर्गवाद के खिलाफ लिखने के लिए ही सरकारी पद से त्यागपत्र दे दिया। वह इससे सम्बन्धित बातों को उन्मुख होकर लिखना चाहते थे। उनके मुताबिक वर्तमान युग न तो धर्म का है और न ही मोक्ष का। अर्थ ही इसका प्राण बनता जा रहा है। आवश्यकता के अनुसार अर्थोपार्जन सबके लिए अनिवार्य होता जा रहा है। इसके बिना जिन्दा रहना सर्वथा असंभव है।
वह कहते हैं कि समाज में जिन्दा रहने में जितनी कठिनाइयों का सामना लोग करेंगे उतना ही वहाँ गुनाह होगा। अगर समाज में लोग खुशहाल होंगे तो समाज में अच्छाई ज्यादा होगी और समाज में गुनाह नहीं के बराबर होगा। प्रेमचन्द ने शोषितवर्ग के लोगों को उठाने का हर संभव प्रयास किया। उन्होंने आवाज लगाई "ए लोगों जब तुम्हें संसार में रहना है तो जिन्दों की तरह रहो, मुर्दों की तरह जिन्दा रहने से क्या फायदा।"
प्रेमचन्द ने अपनी कहानियों में शोषक-समाज के विभिन्न वर्गों की करतूतों व हथकण्डों का पर्दाफाश किया है।
कथानक
उपन्यास वे ही उच्च कोटि के समझे जाते हैं जिनमें आदर्श तथा यथार्थ का पूर्ण सामंजस्य हो। 'गोदान' में समान्तर रूप से चलने वाली दोनो कथाएं हैं - एक ग्राम्य कथा और दूसरी नागरी कथा, लेकिन इन दोनो कथाओं में परस्पर सम्बद्धता तथा सन्तुलन पाया जाता है। ये दोनो कथाएं इस उपन्यास की दुर्बलता नहीं वरन, सशक्त विशेषता है।
यदि हमें तत्कालीन समय के भारत वर्ष को समझना है तो हमें निश्चित रूप से गोदान को पढना चाहिए इसमें देश-काल की परिस्थितियों का सटीक वर्णन किया गया है। कथा नायक होरी की वेदना पाठको के मन में गहरी संवेदना भर देती है। संयुक्त परिवार के विघटन की पीड़ा होरी को तोड़ देती है परन्तु गोदान की इच्छा उसे जीवित रखती है और वह यह इच्छा मन में लिए ही वह इस दुनिया से कूच कर जाता है।
गोदान औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत किसान का महाजनी व्यवस्था में चलने वाले निरंतर शोषण तथा उससे उत्पन्न संत्रास की कथा है। गोदान का नायक होरी एक किसान है जो किसान वर्ग के प्रतिनिधि के तौर पर मौजूद है। 'आजीवन दुर्धर्ष संघर्ष के बावजूद उसकी एक गाय की आकांक्षा पूर्ण नहीं हो पाती'। गोदान भारतीय कृषक जीवन के संत्रासमय संघर्ष की कहानी है।
'गोदान' होरी की कहानी है, उस होरी की जो जीवन भर मेहनत करता है, अनेक कष्ट सहता है, केवल इसलिए कि उसकी मर्यादा की रक्षा हो सके और इसीलिए वह दूसरों को प्रसन्न रखने का प्रयास भी करता है, किंतु उसे इसका फल नहीं मिलता और अंत में मजबूर होना पड़ता है, फिर भी अपनी मर्यादा नहीं बचा पाता। परिणामतः वह जप-तप के अपने जीवन को ही होम कर देता है। यह होरी की कहानी नहीं, उस काल के हर भारतीय किसान की आत्मकथा है। और इसके साथ जुड़ी है शहर की प्रासंगिक कहानी। 'गोदान' में उन्होंने ग्राम और शहर की दो कथाओं का इतना यथार्थ रूप और संतुलित मिश्रण प्रस्तुत किया है। दोनों की कथाओं का संगठन इतनी कुशलता से हुआ है कि उसमें प्रवाह आद्योपांत बना रहता है। प्रेमचंद की कलम की यही विशेषता है।
इस रचना में प्रेमचन्द का गांधीवाद से मोहभंग साफ-साफ दिखाई पड़ता है। प्रेमचन्द के पूर्व के उपन्यासों में जहॉ आदर्शवाद दिखाई पड़ता है, गोदान में आकर यथार्थवाद नग्न रूप में परिलक्षित होता है। कई समालोचकों ने इसे महाकाव्यात्मक उपन्यास का दर्जा भी दिया है।
3/5 Gaban(गबन)
सारांश – इस उपन्यास में विरोधाभासी भाग्यवाली दो औरतो की कहानी है | पहली है इस उपन्यास की नायिका “जालपा” जो दिखने में बहुत ही सुन्दर है | हाँ .... एक बात और बताना भूल गए वह ये की मुंशी प्रेमचंद के ज्यादा से ज्यादा कहानी की नायीका यह एक रमणी या सुंदरी होती थी इसकी वजह शायद यह रही होगी की मुंशी प्रेमचंद की पत्नी उनसे उम्र में बड़ी और बदसूरत थी | इसलिए शायद अपने सपनो की पत्नी को उन्होंने अपनी कल्पना में साकारा |
चलिए तो कहानी पता करते है | जालपा जो की बहुत सुन्दर है उसका पति रमानाथ इन दोनो की शादी के वक्त अपने अमीरी की बहुत डींगे मारता है तो जालपा अपने ससुराल वालो को बहुत अमीर समझती है पर रहता है इसका एकदम उल्टा.......
अब जालपा का पति उसे खुश रखने के लिए आये दिन नए नए गहने बनवाके देता है | इसी चक्कर में वह सरकारी दफ्तर जहां वह नौकरी करता है वहां “ गबन” करता है | पुलिस के पकड़ने के डर से वह शहर छोड़कर दुसरे शहर भाग जाता है | इसके बाद उसके साथ क्या – क्या होता है यह आप खुद ही पढ़कर जान लीजिये |
जालपा की एक बहुत ही घनिष्ठ सहेली बन जाती है उसका नाम है “रतन” | उसकी शादी एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति के साथ होती है जो पेशे से वकील है | वह अपनी वसीयत नहीं बनवा पाता | उसके मरने के बाद रतन के बहुत बुरे हाल होते है | उसके पति के रिश्तेदार उससे उसकी सारी जायदाद छीन लेते है | उसको भूखो मरने के लिए छोड़ देते है | ऐसे में वह जालपा के घर आश्रय लेती है | जिस घर में वह कभी मोटर में बैठकर आती थी | जहाँ वह कभी पैसे – पानी से मदद किया करती | आज उसी घर में आश्रिता बनकर रह रही है | उस ज़माने में स्त्रियों की ऐसी दुर्दशा हुआ करती थी | तब स्त्रियों को उतने अधिकार नहीं थे | अभी की स्त्री ज्यादा सशक्त और समझदार है | यह स्वतंत्रता उनको अपने पैरो पर खड़े होकर हासिल करनी होगी | ज्यादा से ज्यादा शिक्षित होना होगा | अपनी मौजूदगी बतानी होगी | अर्जुन ने दुशाशन के मौत के पहले कहा था | कलयुग में औरतो पर और ज्यादा अत्याचार होंगे इसलिए दुष्टों को सजा देने के लिए , समाज के हित के लिए हमें यह युद्ध करना होगा | पांचाली के तो पांच पति थे , वह भी शक्तिशाली | वे उसके लिए लढ़े पर आज की नारी के लिए कौन लढे ? उसको खुद के लिए खुद ही लढना पड़ेगा |
इसलिए हम पुराने लेखको की भी किताबे पढ़ते है ताकि हमें “तब” और “अब” का फरक समझ में आये | हम अभी की इन सारी खुशियों को संभालकर रख सके क्योंकि हर एक ख़ुशी , अधिकार , स्वतंत्रता किसी ना किसी के संघर्ष के बाद ही अस्तित्व में आयी है | हमें उन्हें सहेजकर रखना चाहिए | मानवता के बहुत सारे पहलुओ को आप के सामने रखने वाली इस किताब को आप एक बार तो भी जरूर ,जरूर पढ़े.........
अगर आप को हमारा लिखा हुआ ब्लॉग अच्छा लगता है , कुछ ज्यादा है , कुछ कम है या फिर कुछ सब्जेक्ट के बहार है तो हमें कमेंट में जरूर बताये | वैसे किताबो के रूप में इतना सारा ज्ञान बिखरा पड़ा है | इस सारे ज्ञान को आप तक पहुंचाने की कोशिश करना हमारा लक्ष्य है | ताकि किताबो के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोग शिक्षित हो सके | ज्यादा ज्ञान हासिल कर सके |
4/5 Rangbhomi(रंगभूमि)
गोदाम के पीछे की ओर एक विस्तृत मैदान था. यहां आस-पास के जानवर चरने आया करते थे। जॉन सेवक यह जमीन लेकर यहां सिगरेट बनाने का एक कारखाना खोलना चाहते थे. जमीन सूरदास की है. वह अपनी जमीन सिगरेट का कारखाना लगाने के लिए नहीं देना चाहता. उसे कईं तरह का प्रलोभन दिखाया जाता है लेकिन वह जमीन देने को राजी नहीं तो क्या जॉन सेवक बिना कारखाना लगाए ही चले जाते हैं यार सूरदास से जबरन जमीन छीन जाती है क्या गांववाले सूदरदास का समर्थन करते हैं या उसे अकेले ही जंग लड़नी पड़ती है? कहानी के दूसरे पन्ने में ईसाई लड़की सोफिया विनय सिंह से प्रेम कर बैठती है. जातप्रथा के उस दौरा में सोफिया-विनय का प्यार सफल हो पाता है? यह तो आपको कहानी पढ़ने से ही पता लगेगा.
उपन्यास सम्राट प्रेमचंद (1880-1936) का पूरा साहित्य, भारत के आम जनमानस की गाथा है. विषय, मानवीय भावना और समय के अनंत विस्तार तक जाती इनकी रचनाएँ इतिहास की सीमाओं को तोड़ती हैं, और कालजयी कृतियों में गिनी जाती हैं. रंगभूमि (1924-1925) उपन्यास ऐसी ही कृति है. नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन तथा स्त्री दुदर्शा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है. परतंत्र भारत की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक समस्याओं के बीच राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण यह उपन्यास लेखक के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को बहुत ऊँचा उठाता है. देश की नवीन आवश्यकताओं, आशाओं की पूर्ति के लिए संकीणर्ता और वासनाओं से ऊपर उठकर नि:स्वार्थ भाव से देश सेवा की आवश्यकता उन दिनों सिद्दत से महसूस की जा रही थी. रंगभूमि की पूरी कथा इन्हीं भावनाओं और विचारों में विचरती है. कथा का नायक सूरदास का पूरा जीवनक्रम, यहाँ तक कि उसकी मृत्यु भी राष्ट्रनायक की छवि लगती है. पूरी कथा गाँधी दर्शन, निष्काम कर्म और सत्य के अवलंबन को रेखांकित करती है. यह संग्रहणीय पुस्तक कई अर्थों में भारतीय साहित्य की धरोहर है. कहानी में सूरदास के अलावा सोफी, विनय, जॉन सेवक, प्रभु सेवक का किरदार भी अहम है. सोफी मिसेज जॉन सेवक, ताहिर अली, रानी, डाक्टर गांगुली, क्लार्क, राजा साहब, इंदु, ईश्वर सेवक, राजा महेंद्र कुमार सिंह, नायकरामघीसू, बजगंरी, जमुनी, जाह्नवी, ठाकुरदीन, भैरों जैसे कईं किरदार हैं.
5/5 karmabhoomi(कर्मभूमि)
प्रेमचन्द का ‘कर्मभूमि’ उपन्यास एक राजनीतिक उपन्यास है जिसमें विभिन्न राजनीतिक समस्याओं को कुछ परिवारों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। ये परिवार यद्यपि अपनी पारिवारिक समस्याओं से जूझ रहे हैं तथापि तत्कालीन राजनीतिक आन्दोलन में भाग ले रहे हैं। उपन्यास का कथानक काशी और उसके आसपास के गाँवों से संबंधित है। आन्दोलन दोनों ही जगह होता है और दोनों का उद्देश्य क्रान्ति है। किन्तु यह क्रान्ति गाँधी जी के सत्याग्रह से प्रभावित है। गाँधीजी का कहना था कि जेलों को इतना भर देना चाहिए कि उनमें जगह न रहे और इस प्रकार शान्ति और अहिंसा से अंग्रेज सरकार पराजित हो जाए। इस उपन्यास की मूल समस्या यही है। उपन्यास के सभी पात्र जेलों में ठूंस दिए जाते हैं। इस तरह प्रेमचन्द क्रान्ति के व्यापक पक्ष का चित्रण करते हुए तत्कालीन सभी राजनीतिक एवं सामाजिक समस्याओं को कथानक से जोड़ देते हैं। निर्धनों के मकान की समस्या, अछूतोद्धार की समस्या, अछूतों के मन्दिर में प्रवेश की समस्या, भारतीय नारियों की मर्यादा और सतीत्व की रक्षा की समस्या, ब्रिटिश साम्राज्य के दमन चक्र से उत्पन्न समस्याएँ, भारतीय समाज में व्याप्त धार्मिक पाखण्ड की समस्या, पुनर्जागरण और नवीन चेतना के समाज में संचरण की समस्या, राष्ट्र के लिए आन्दोलन करने वालों की पारिवारिक समस्याएँ आदि इस उपन्यास में बड़े यथार्थवादी तरीके से व्यक्त हुई हैं।
अगर किसी तरह की तरीके हमसे गलती हो गई हो तो comment में बताए ।
यह सारी जानकारी इंटरनेट पे उपलब्ध है। इसमें किसी भी तरह की छेड़खानी नही हाई हैं।
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